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Friday, 18 September 2015

1945 के बाद जिंदा थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, नेताजी की होती थी जासूसी!

पश्चिम बंगाल सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाने के लिए शुक्रवार को उनसे जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक कर दीं। 

राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि मैंने उसमें से कुछ फाइलें पढ़ी। उन्होंने कहा कि उन फाइलों के अनुसार 1945 के बाद नेताजी के जिंदा होने की बात सामने आई है। साथ ही ममता बनर्जी ने कहा कि उन फाइलों को पढ़नें के बाद पता चला है कि नेताजी की जासूसी भी होती थी। 

इन 64 फाइलों का डिजिटल संस्करण सात डीवीडी के एक सेट में उपलब्ध है। मूल फाइलें कोलकाता पुलिस संग्रहालय में रखी गई हैं। फाइलों में 12,744 पृष्ठ हैं और ये शोधकर्ताओं एवं विद्वानों के लिए उपलब्ध हैं।

कोलकाता पुलिस आयुक्त सुरजीत कार पुरकायस्थ ने संग्रहालय में एक छोटे से समारोह के बाद फाइलों को नेताजी के वंशजों को सौंप दिया और इसकी प्रति संवाददताओं को भी दी।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 11 सितंबर को यह कहते हुए नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक करने के अपनी सरकार फैसले की घोषणा की थी कि नेताजी के गायब होने से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाए जाने की जरूरत है।

ममता ने कहा," नेताजी के गायब होने से जुड़ा रहस्य बरकरार है। इसलिए हमारे पास जो भी फाइलें हैं, हम उन्हें सार्वजनिक करेंगे, जिससे शायद उस रहस्य को दूर करने में मदद मिले।"

उन्होंने कहा,"हमारे पास जो 64 फाइलें हैं, उन सभी को सार्वजनिक किया जाएगा। वे शहर के पुलिस संग्रहालय में रखी जाएंगी।"

ममता बोलीं, केंद्र भी सार्वजनिक करे फाइलें


ममता बनर्जी ने गेंद अब मोदी सरकार के पाले में डाल दी है. ममता बनर्जी आज नेताजी की फाइलें कोलकाता के पुलिस म्यूजियम में सार्वजनिक होने के बाद उसका अवलोकन करने पहुंची. इस दौरान उन्होंने कहा कि उनके पास जो फाइलें थीं, उसे उन्होंने सार्वजनिक कर दिया है, अब केंद्र सरकार भी फाइलें सार्वजनिक करे. केंद्र के पास नेताजी से जुडी 150 फाइलें हैं. जब भाजपा सत्ता से बाहर थी, तब वह हमेशा नेताजी की फाइलें सार्वजनिक करने की मांग उठाती थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद उसके बोल बदल गये हैं. इस संबंध में इस आशय की खबरें भी मीडिया में आयी हैं कि वे फाइलें सार्वजनिक किये जाने से कुछ देशों से कूटनीतिक रिश्ते खराब हो सकते हैं.

बहरहाल, ममता बनर्जी ने कहा है कि नेताजी, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, भगत सिंह आदि हमारे राष्ट्र नायक हैं. ऐसे में हम उनसे जुडे किसी सत्य को जनता से क्यों छिपायें. उन्होंने कहा कि यह लॉ एंड ऑर्डर का प्राब्लम नहीं है और और कोई समस्या होगी तो हम उसे हैंडल कर लेंगे. उन्होंने कहा कि अपने महापुरुषों से जुडे तथ्यों को हम छिपा नहीं सकते हैं. अत: केंद्र भी अपने पास से नेताजी की फाइल व चिट्ठियों को सार्वजनिक करे.

नेताजी के प्रपौत्र चंद्र वर्मा ने भी नेताजी की फाइलें सार्वजनिक किये जाने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि अब केंद्र भी उनकी 150 फाइलें सार्वजनिक करे. उन्होंने कहा कि अब नेताजी की जासूसी का राज खुलेगा. 

Thursday, 17 September 2015

HAPPY CONSTITUTION DAY , here is a quiz to see how much you know about your constitution?

Washington post organized a quiz competition about USA constitution. #constitution day occurs every year on Sept. 17 and which could be called the U.S. government’s birthday. Constitution Day was created by Congress in 2004 to require that all schools which receive federal funding offer some type of “educational program” on the U.S. Constitution, but it doesn’t define what that should be.  Sept. 17 was chosen because it was the last session of the 1787 Constitutional Convention in Philadelphia, during which the final version  of the newly written U.S. Constitution was signed by 39 delegates.  Benjamin Franklin, the oldest signer of our Constitution at age 81, said — and warned — upon leaving Independence Hall and being asked what form of government the Constitutional Convention had established: "A republic, if you can keep it."

HERE IS THE QUIZ FOR YOU, LET ME KNOW THE ANSWERS IN COMMENT BOX

Q1-Who is considered the father of the Constitution?

Q2-Who was unanimously elected to preside over the 1787 Constitutional Convention in Philadelphia?

Q3-What did the Senate initially want to call the president?

Q4-Under the Constitution, the longest time a president can serve ?


Q5- One of the states boycotted the Constitutional Convention in 1787, annoying even the mild-tempered George Washington, because it liked its independence. Which state was it?


एपल की नई एप से एंड्रॉयड से आईफोन में डाटा ट्रांसफर होगा आसान


एप्पल कंपनी ने अपने ने ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ Move to iOS ऐप लॉन्च कर दिया है। जिसकी मदद से एंड्रॉइड स्मार्टफोन से iOS में बिना किसी कनेक्शन के डाटा ट्रांसफर किया जा सकेगा। ऐप को गूगल के प्ले स्टोर पर लिस्ट कर दिया गया है।इस ऐप की साइज 2.6 MB है और इसे इस्तेमाल करने के लिए आपके फोन में 4.0 से ज्यादा का ऑपरेटिंग सिस्टम होना जरूरी है। खबर लिखे जाने तक इस ऐप को 2,649 लोगों ने रिव्यू किया है। एंड्रॉइड से iPhone में स्विच करते समय यूजर के सामने डाटा ट्रांसफर सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में कंपनी का 'मूव टू iOS' ऐप यूजर्स की मुश्किल को आसान बनाएगा। आपको बता दें कि कंपनी ने इस ऐप की घोषणा जून महीने में WWDC (वर्ल्ड वाइड डेवलप्रस कॉन्फ्रेंस) के दौरान की थी। जानकारों का मानना है कि एप्पल Move to iOS ऐप की मदद से एंड्रॉइड यूजर्स को अपनी तरफ आकर्शित करना चाहती है। ऐसे में यह ऐप गूगल के लिए कड़ी चुनौती हो सकती है। यहां से करें इस एप को डाउनलोड

iOS 9 के साथ ही कंपनी ने एंड्रॉइड यूजर्स को एक ऐसा ऐप दिया है जिससे यूजर बिना किसी कनेक्शन के पर्सनल डाटा, डाउनलोड किए गए ऐप्स साथ ही अन्य इंफॉर्मेशन एंड्रॉइड फोन से आईफोन में भेज सकते हैं।

Monday, 14 September 2015

लिंगभेदी कानून लड़कियों की नौकरी में बाधा

दो दशक पहले दुनिया भर के 189 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसके मुताबिक ये सभी देश महिलाओं के विकास और लैंगिक समानता पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि वल्र्ड बैंक की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक इस लक्ष्य तक पहुंचने में सबसे बड़ी रुकावट तमाम देशों में मौजूद कानून हैं। इनकी वजह से महिलाएं हर वह नौकरी नहीं कर पातीं जो पुरुष कर लेते हैं।
वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट ‘वुमेन, बिजनेस एंड लॉ 2016’ के मुताबिक महिलाओं को 150 देशों में कानूनी तौर पर   नौकरियों में प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है। यह रुकावटें सिर्फ उन महिलाओं को ही नहीं बल्कि उनके बच्चों, समुदाय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। वल्र्ड बैंक के अनुसार 90 प्रतिशत देशों में कम से कम एक कानून ऐसा मौजूद है जो महिलाओं की आर्थिक अवसरों की राह में रोड़ा बने हुए हैं।

किस तरह की नौकरियां कर सकती हैं महिलाएं?

लगभग 100 देश ऐसे हैं जहां महिलाएं कुछ नौकरियां नहीं कर सकती हैं। इनमें भारत भी शामिल है। जैसे 41 देशों में महिलाएं चुनिंदा फैक्ट्रियों में काम नहीं कर सकतीं, 29 देशों में महिलाओं के रात में काम करने पर रोक है और 19 देश ऐसे हैं जहां महिलाएं अपनी पति की मर्जी के बिना काम न करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। इतना ही नहीं सिर्फ आधे देशों में ही पितृत्व अवकाश की व्यवस्था है और एक तिहाई से भी कम में पेरेंटल लीव है। 30 देशों में शादीशुदा महिलाएं यह तय नहीं कर सकतीं कि उन्हें कहां रहना है। अकेले रूस में ऐसी 456 नौकरियां हैं जहां महिलाएं काम नहीं कर सकतीं। इनमें से एक ट्रेन ड्राइवर बनना, कार्पेंटर, ट्रैक्टर ड्राइवर, प्लंबर बनना शामिल हैं। वहीं कैमरून और यमन ऐसे कुछ देशों में हैं जहां महिलाओं को नौकरी के लिए अपने पति की मर्जी लेना जरूरी है।

भर्ती के दौरान होता है भेदभाव

world बैंक के मुताबिक 100 से ज्यादा ऐसे देश हैं जहां नियुक्ति के दौरान होने वाले लिंगभेद को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। इतना ही नहीं एक महिला के गर्भवती होने पर नियोक्ता उसे नौकरी से निकाल भी सकता है। हालांकि अधिकांश देशों ने इसके लिए कानून बनाया है लेकिन अभी भी 26 ऐसे देश हैं जहां गर्भवती महिलाओं को नौकरी   से निकालना अपराध नहीं माना जाता है।
बीते कुछ सालों में बॉलीवुड में महिला प्रधान फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल किया है। कंगना रनोट की फिल्म तनु वेड्स मनु रिटन्र्स अकेली ऐसी महिला प्रधान फिल्म बन गई है जिसने 100 करोड़ से  ज्यादा की कमाई की। मगर पर्दे के पीछे की कहानी अभी भी चिंताजनक है। आंकड़ों को देखें तो बॉलीवुड में अभी भी 6.2 पुरुष कलाकारों पर सिर्फ 1 महिला कलाकार है। भारतीय फिल्म उद्योग दुनिया का ऐसा फिल्म उद्योग है जहां महिला अभिनेत्रियों की हिस्सेदारी सबसे कम है। देश में
महिला डायरेक्टर पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 9.1 फीसदी ही हैं। आइए जानते हैं दुनियाभर के फिल्म उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में...

दुनियाभर में सिर्फ 20.5% महिला डायरेक्टर

दुनियाभर के फिल्म उद्योगों में सिर्फ 20.5 फीसदी डायरेक्टर ही महिलाएं हैं। ‘जीना डेविस इंस्टीट्यूट ऑन जेंडर इन मीडिया’  ने दुनिया के 12 बड़े फिल्म उद्योगों में सर्वे के आधार पर यह दावा किया है। भारत में सिर्फ 9.1 फीसदी महिलाएं ही फिल्मों में निर्देशक की भूमिका निभा रही हैं। सबसे ज्यादा महिला फिल्म डायरेक्टर ब्रिटेन में हैं। यहां महिला डायरेक्टरों का प्रतिशत 27.3 फीसदी है जबकि फ्रांस और अमेरिका में फिल्म डायरेक्टरों की संख्या न के बराबर है। चीन में 16.7 फीसदी डायरेक्टर महिलाएं हैं।

12 फीसदी महिला पटकथा लेखक

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में न सिर्फ निर्देशन बल्कि पटकथा लेखन में भी महिलाएं बेहद कम हैं। भारत में 12.1 फीसदी पटकथा लेखक महिलाएं हैं जबकि ब्रिटेन में सबसे ज्यादा 58.8 फीसदी पटकथा लेखक महिलाएं हैं । ऑस्ट्रेलिया में 33 और ब्राजील में 30 प्रतिशत पटकथा लेखक महिलाएं हैं। सबसे कम महिला पटकथा लेखक अमेरिकी फिल्म इंटस्ट्री में हैं। यहां सिर्फ 11.8 फीसदी स्क्रीनप्ले राइटर हैं।

भारत में महिलाओं को लीड रोल नहीं 

जीना डेविस इंस्टीट्यूट के सर्वे के मुताबिक भारत की फिल्मों में लीड महिला किरदार बिल्कुल न के बराबर हैं। सर्वे में शामिल भारतीय फिल्मों के किरदारों में कोई ऐसा किरदार नजर नहीं आया जिसे फिल्म लीड भूमिका मिली हो। इतना ही नहीं फिल्म के कुल किरदारों में भी सिर्फ 24.9 प्रतिशत ही महिलाओं को मिले हैं। इस मामले में भारत दुनिया के दूसरे फिल्म उद्योगों में सबसे आगे है। सबसे ज्यादा ब्रिटेन के फिल्म उद्योग में महिलाओं को रोल मिला है। सर्वे में यह भी सामने आया कि भारतीय फिल्मों में खूबसूरत महिलाओं को सबसे ज्यादा अभिनय का मौका मिला है। यहां फिल्मों में 25.2 फीसदी रोल खूबसूरत महिलाओं के थे जबकि दूसरे फिल्म उद्योगों की फिल्मों में औसतन 13.1 फीसदी खूबसूरत महिलाओं के किरदार थे।

फिल्म निर्माण में 15 फीसदी महिलाएं 

महिला फिल्म निर्माताओं के मामले में भी भारत पीछे हैं। भारत के फिल्म निर्माताओं में सिर्फ 15.2 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। जापान में सबसे कम महिलाएं फिल्म निर्देशक हैं। ब्राजील में महिला फिल्म प्रोड्यूसर सबसे ज्यादा हैं। यहां इनका प्रतिशत 47.2 है।
महिला वर्कफोर्स में भारत सिर्फ अरब देशों से ऊपर
संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत जी-20 देशों में नीचे से दूसरे पायदान पर है.। भारत इस रिपोर्ट में सिर्फ सऊ दी अरब से बेहतर है जहां महिलाओं पर गाड़ी चलाने तक पर प्रतिबंध है। विश्व आर्थिक मंच के हिसाब से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में भारत 136 देशों में 124वें नंबर पर है। भारत से नीचे के 12 देशों में राजनीतिक अस्थिरता वाले देश मिस्र, सीरिया और पाकिस्तान हैं।

लोकसभा में 10 सांसदों में एक महिला

भारत की राजनीति में भी महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है। 2014 के लकसभा चुनावों के बाद सिर्फ 61 महिलाएं ही सांसद बन पाईं। 1952 में लोकसभा में सिर्फ 22 महिलाएं चुनी गईं थीं। भले ही 2014 तक इनकी संख्या बढ़ गई हो लेकिन यह अब भी वैश्विक औसत 20% से कम है। राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को कम तरजीह देना भी इस असमानता की बड़ी वजह है। 2009 के चुनावों में सिर्फ 349 महिलाओं को टिकट मिला था।


खेल में भी पक्षपात

खेल के क्षेत्र में भी महिलाओं के साथ पक्षपात साफ जगजाहिर है। आंकड़े बताते हैं कि 30 फ़ीसदी खेलों में इनाम की राशि पुरुष खिलाड़ियों के लिए महिला खिलाड़ियों के मुक़ाबले ज्यादा है। महिला फ़ुटबॉलरों को पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले काफ़ी कम पैसा मिलता है। इनमें से जिन 35 खेलों में इनाम में पैसा दिया जाता है, उनमें से 25 बराबर भुगतान करते हैं और 10 नहीं।

पुरुषों से ज्यादा कुशल 

भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार भारत में कुशल और प्रतिभासंपन्न महिलाओं की तादाद बढ़ी है। भारत के 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के तीन लाख छात्रों का भी आकलन किया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, स्नातकों में 38 प्रतिशत महिलाएं और 34 प्रतिशत पुरुष सेवा योग्य है। इसके बावजूद महिलाएं आज भी भारत में कुल कार्य बल का एक तिहाई हिस्सा भी नहीं हैं। भारत के जॉब प्रिडिक्शन सर्वे के मुताबिक, उद्योग क्षेत्रों में लिंग अनुपात 68:32 है।